मन का है यह सारा खेल
जब जीव का होता उस से मेल
संसार में करता उथल पुथल
और मन में होजाती हलचल
मन की ना बात सुनो
नाच नाचायेगा ज़रूर वो
उल्टा सीधा सारा नज़ारा
हमको बतलायेगा वो
मन पर न विश्वास करो
बाज़ी पलट पलट खेलता वो
कभी इधर कभी उधर भगाता
करदेता दिल को घायल वो
मन की शरारत देखो ना
मौज नहीं है मस्ती ना
दुःख सुख साथ ले आता वो
कभी हसी कभी रुला देता है वो
मन तो जैसे शीशा हो
कर्मों का धूल जमाकर वो
संसार की माया में हमको
फसा देता जन्मों जन्मों
मन में गहरे न उतरो
दिल की बात सुना करो
धड़कता है दिल हमारे लिए
पराया नहीं अपना है वो
मन को छोड़ पकड़ो इस दिल को
देगा जीवन मुक्ति का राह तुमको
दिल है सच्चा दोस्त तुम्हारा
जो साथ कभी ना छोडे तुम्हारा…
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Very nice….
Thanks 🙂